देखभाल
खेती के दौरान, खरपतवारों को रोकने तथा नमी बनाए रखने के लिए पौधों की चारों तरफ तथा बीच में पलवार से लगाएं। मिट्टी को नम रखें जिससे कि उथली जड़ें पानी ले सकें। कंद के आकार को बढ़ाने के लिए कुछेक सप्ताह के अंतर पर नाइट्रोजन उर्वरकों का प्रयोग करें तथा जब प्याज़ मिट्टी हटाने लगें और कंद बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाये, तब उर्वरीकरण को बंद कर दें।
फसल काटने के समय, जड़ों को काटना चाहिए और शीर्ष को 1 इंच तक काट देना चाहिए। कन्दों को भंडारण क्षेत्र में भंडारित करने से पूर्व कई सप्ताह तक सूखने देना चाहिए। प्याज़ को 40 से 50 डिग्री फ़ारेनहाइट पर नायलॉन की बोरियों में रखना चाहिए, साथ ही इन्हें सेब या नारंगी के साथ नहीं रखना चाहिए।
मिट्टी
प्याज़ की खेती के लिए सर्वश्रेष्ठ मिट्टी अच्छी जलनिकासी, जलधारण क्षमता और पर्याप्त जैविक तत्वों वाली गहरी, भुरभुरी दोमट और कछारी मिट्टी होती है। किसी भी प्रकार की मिट्टी में आदर्श पीएच स्तर 6.0-7.5 है, किंतु प्याज़ को हल्की क्षारीय मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। इन्हें पर्याप्त धूप और जलनिकासी की आवश्यकता होती है। प्याज़ के पौधे 4 इंच उठी हुई क्यारियों या मिट्टी के ढेर की कतारों में अच्छी तरह उगते हैं।
जलवायु
प्याज़ एक शीतोष्ण फसल है, लेकिन इसे शीतोष्ण, उष्णकटिबंधीय तथा उपउष्णकटिबंधीय जलवायु जैसी अनेक प्रकार की जलवायु परिस्थितियों में भी उगाया जा सकता है। हालांकि प्याज़ की फसल जमा देने वाले तापमान को भी सह सकती है, लेकिन सबसे अच्छी फसल मृदु मौसम में प्राप्त की जा सकती है, जहाँ ठंड, गर्मी और वर्षा की अधिकता न हो। अच्छी बढ़त के लिए इसे 70% सापेक्षिक आर्द्रता की आवश्यकता होती है। यह उन स्थानों में बेहतर उगती है, जहाँ 650-700 मिमी. की वार्षिक वर्षा होती है और बारिश का मानसून के समय में अच्छा वितरण होता है। वानस्पतिक विकास के लिए प्याज़ की फसल को कम तापमान और दिन की रोशनी की कम अवधि की आवश्यकता होती है, जबकि कंद के विकास और पकने के समय अधिक तापमान तथा दिन के प्रकाश की लंबी अवधि की आवश्यकता होती है।