फफूंद
Neonectria ditissima
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तनों और शाखाओं पर मृत छाल (कैंकर) के गोल या अंडाकार धंसे हुए भाग देखे जा सकते हैं। संक्रमण आम तौर पर घावों के आसपास या टहनियों की कलियों और नई शाखाओं पर लाल धंसे हुए धब्बों के रूप में शुरू होता है। ये धब्बे बाद में बढ़कर कैंकर या नासूर में बदल जाते हैं जो एक ही मौसम में शाखाओं को घेरकर मार सकते हैं। बड़ी शाखाओं पर ये भूरे-लाल, अवतल, धंसे हुए धब्बों के रूप में नज़र आते हैं जो बाद में फटकर खुल जाते हैं जिससे केंद्र में मृत लकड़ी नज़र आती है। मृत छाल में गत वर्षों में एकत्रित संकेंद्री छल्ले दिखाई देते हैं जबकि किनारे उभरे हुए होते हैं। नासूर के ऊपर की शाखाएं कमज़ोर हो जाती हैं और धीरे-धीरे मर जाती हैं। कभी-कभी विकसित हो रहे फलों पर भी हमला होता है और ये बाह्य दल पुंज के आसपास "आई रॉट" (आंख के आकार की सड़ांध) दर्शाते हैं।
लक्षणों का कारण फफूंद, नेक्ट्रिया गैलिगेना, है जो सेब समेत कई पेड़ों की छाल पर हमला करता है। फफूंद के बीजाणु गर्मियों में पानी और सर्दियों व बसंत में हवा से फैलते हैं। दोनों तरह के बीजाणु घाव वाले या क्षतिग्रस्त हिस्सों पर गिरने पर संक्रमण की शुरुआत कर सकते हैं। पेड़ों की काट-छांट के कारण होने वाले घाव, पाला, पपड़ी रोग और एफ़िड से बने घाव संक्रमण को बढ़ावा देते हैं। नम मिट्टी, भारी मिट्टी और अम्लीय मिट्टी में कैंकर ज़्यादा गंभीर होता है। महामारी फैलने के लिए 14-15.5° सेल्सियस तापमान सर्वोत्तम होता है। लंबे समय तक पेड़ में नमी रहना (6 घंटे या अधिक) भी बड़ा कारण है। पेड़ की मज़बूती और उसके संक्रमित हिस्से में दोबारा छाल बनाने की क्षमता के अनुसार कैंकर का आकार घटता-बढ़ता रहता है।
अब तक इस फफूंद का कोई जैविक नियंत्रक उपलब्ध नहीं है। कॉपर पर आधारित घाव सील करने वाले उत्पादों के इस्तेमाल से फलदार पेड़ों का नासूर सीमित किया जा सकता है।
हमेशा एक समन्वित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। संक्रमित शाखाओं को काटने-छांटने के बाद खुली सतह पर घाव सील करने वाले उत्पाद या पेंट लगा देना चाहिए। कॉपर हाइड्रॉक्साइड या कैप्टान पर आधारित कवकनाशकों के इस्तेमाल से फलदार पेड़ों का कैंकर होना सीमित किया जा सकता है। कॉपर उपचारों का इस्तेमाल पत्तियां गिरने और कली फूलने पर भी किया जा सकता है।