चेरी

ब्राउन रोट (भूरे रंग की सड़न)

Monilinia laxa

फफूंद

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संक्षेप में

  • संक्रमित फल मुरझा जाते हैं, भूरे पड़ जाते हैं और अक्सर टहनियों से एक गोंददार गूदे की तरह चिपक जाते हैं।
  • फलों पर भूरे रंग के धब्बे दिखने लगते हैं और उनके भीतर सफ़ेद या पीले रंग के दाने पैदा हो जाते हैं।
  • फल पानी छोड़ने लगते हैं और सूखकर पेड़ से लटके रहते हैं।
  • भंड़ारित फल पूर्ण रूप से काले पड़ सकते हैं।

में भी पाया जा सकता है

7 फसलें
बादाम
सेब
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चेरी

लक्षण

फसल के आधार पर लक्षणों में भिन्नता होती है और इसे मुख्यतया खिले फूल के कुम्हलाने और फल के सड़ने के चरण के द्वारा पहचाना जाता है। फूल के कुम्हलाने का प्रथम लक्षण फूलों का मुरझाना होता है, जो भूरे पड़ जाते हैं और अक्सर एक गोंददार गूदे में चिपके रहते हैं। ये संक्रमण टहनी में फैल सकता है और उसके चारों ओर घेरा बना सकता है। अगर कलियाँ-कोपलें पूर्णतया नही मरती हैं, तो संक्रमण फूल से विकसित होती पत्तियों व फलों में पहुँच जाता है। पत्तियाँ सूख जाती हैं किन्तु पूरे वर्ष वृक्ष पर रहती हैं। फल का गलना वृक्षों पर लगे हुए फलों के साथ-साथ भण्डारित फलों को भी प्रभावित करत सकता है। फलों पर हल्के, भूरे रंग के धब्बे दिखने लगते हैं। जैसे-जैसे धब्बे बढ़ते हैं, वैसे-वैसे धूप से पीले-भूरे हुए स्थानों पर सफ़ेद या पीले रंग के फोड़े हो सकते हैं, कभी-कभी ये संकेन्द्रित घेरों में होते हैं। फलों में धीरे-धीरे पानी की कमी होने लगती है, वे सड़ने लगते हैं, और वृक्ष पर ही सूख जाते हैं। हो सकता है भण्डारित फलों पर फोड़े नहीं हों और वे पूर्णतया काले हो जाएं।

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जैविक नियंत्रण

फल के सड़ने के चरण को नियंत्रित करने के तरीकों में क्षतिग्रस्त करने वाले कारकों को समाप्त करना सबसे अधिक प्रभावी तरीका होता है। फलों कों क्षतिग्रस्त करने वाले या रोग को फैलाने वाले कीटों व पक्षियों को नियंत्रित करके रोग को कम किया जा सकता है। पक्षियों को बिजूका के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। ततैयों के घोंसलों को ढ़ूंढ़कर नष्ट कर दिया जाना चाहिए। फलों को पैक करने व उसे भण्डारित करने हेतु विशिष्ट सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि फफूंद फलों के बीच फैल सकता है।

रासायनिक नियंत्रण

अगर उपलब्ध हो, तो जैविक उपचार और बचाव उपायों के साथ एक संयुक्त दृष्टिकोण पर हमेशा विचार करें। चेरी इस रोग के प्रति सबसे कम ग्रहणशील गुठली वाला फल होता है और इनके लिए तब तक बचाव हेतु छिड़काव की आवश्यकता नहीं होती जब तक कि मौसम विशिष्ट रूप से संक्रमण के फैलने के लिए अनुकूल न हो या बगीचे में ऐसे रोग के पाए जाने का कोई इतिहास हो। डिफ़ेनोकोनाज़ोल व फ़ेनहेक्सामिड पर आधारित कवकनाशकों में से एक का प्रयोग प्रभावकारी सिद्ध हो सकता है। संक्रमण के बाद के चरण में, फफूंद को समाप्त करना संभव नहीं होता है। ओले गिरने जैसी विपरीत मौसम की स्थितियों के बाद किसी रक्षात्मक कवकनाशक का उपयोग करें। कीटों को नियंत्रित करने पर विचार करना महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि मोनिलिया लेक्सा अधिकतर क्षतिग्रस्त स्थानों से संक्रमण को फैलाता है।

यह किससे हुआ

मोनिलिया लेक्सा कई प्रकार के वृक्षों को संक्रमित कर सकता है, विशेष रूप से गुठलियों वाले फल जैसे कि बादाम, सेब, खुबानी, चेरी, आडू, नाशपाती, आलूबुखारा या श्रीफल। यह फफूंद जाड़े के समय वृक्षों से लटकती हुई सूखी पत्तियों या सूखे फलों में बिताता है और इसके बीजाणु हवा, पानी या कीटों के ज़रिये फैलते हैं। इस संक्रमण के फैलने के लिए क्षतिग्रस्त (पक्षियों, कीटों के द्वारा) फलों की उपस्थिति या स्वस्थ व संक्रमित भागों के बीच संपर्क होना अनुकूल होता है। फूलों-फलों के खिलने के दौरान अधिक नमी, बारिश या ओस और कम तापमान (15° से 25° सें.) संक्रमण की प्रक्रिया के लिए अनुकूल होता है। इन स्थितियों में विशिष्ट रूप से स्पष्टतया फलों पर फोड़े पैदा हो जाते हैं। गर्मियों के मौसम के मध्य के समय के बाद से ये लक्षण फलों में दिखाई देने लगते हैं, या तो जब वे वृक्ष पर होते हैं या जब वे भण्डार में होते हैं। हो सकता है भण्डारित फल पूर्णतया काले हो जाएं और उनपर फुंसियां नहीं हों। प्रसार के खतरे के अधिक होने के कारण, फलों के बगीचे व भण्डार दोनों में बड़े नुकसान के होने की अपेक्षा की जा सकती है।


निवारक उपाय

  • प्रमाणित स्रोतों से प्राप्त स्वस्थ पौध सामग्री का उपयोग करें।
  • उचित सिंचाई के साथ अच्छे पौषण कार्यक्रम को लागू करें।
  • खेतों में अच्छी निकासी और अच्छे वायु-संचार के लिए व्यवस्था करें।
  • पक्षियों के द्वारा होने वाले नुकसान को कम करने के लिए जाल का प्रयोग करें।
  • नियमित रूप से बगीचे का मुआयना करें और क्षतिग्रस्त शाखाओं या सूखे फलों को नष्ट कर दें।
  • सावधानी बरतें कि फलों पर चीरा नहीं लगे और वे फटे नहीं।
  • पत्तियों के लिए वायु-संचार बढ़ाने वाली देरी से छॅंटाई वाली विधियों का सुझाव दिया जाता है।
  • सतह के नीचे पौधों को गाड़ने के लिए गहरी खुदाई करें।
  • सुनिश्चित करें की भण्डारण कक्ष साफ़ है।
  • चेरी के फलों को एक साफ़, सूखे स्थान पर करीब 5° से. के तापमान पर भण्डारित करें।
  • सावधानी बरतें कि तोड़ते समय फलों के डंठल उनसे अलग ना हों।
  • अच्छी सामान्य स्वच्छता को बनाए रखने से संक्रमण होने के अवसरों को कम किया जा सकता है।
  • भण्डार में नियमित रूप से फलों की जाँच करें, और खराब हो गए फलों को नष्ट कर दें।

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