खीरा

खीरे पर पपड़ी (क्युकम्बर स्कैब)

Cladosporium cucumerinum

फफूंद

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संक्षेप में

  • पत्तियों पर छोटे, पानी से भरे हुए या हल्के हरे धब्बे, जो बाद में सूख जाते हैं और फटे हुए छिद्र छोड़ जाते हैं।
  • फलों पर छोटे, भूरे, गोंद निकलते हुए धब्बे जो बाद में धंसे हुए गड्ढे बन जाते हैं।
  • द्वितीयक जीवाणु संक्रमण के कारण फल नष्ट हो जाते हैं।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

खीरा

लक्षण

लक्षण अनेक छोटे, पानी से भरे या हल्के हरे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। ये धब्बे धीरे-धीरे सफ़ेद से भूरे और कोणीय बनते हुए सूखकर मर जाते हैं। प्रायः, ये घाव पीले किनारों से घिरे होते हैं। इनका केंद्र झड़ जाता है, जिससे पत्तियों में खुरदुरे छिद्र रह जाते हैं। संक्रमित फलों पर अधिक तीव्र लक्षण दिखाई देते हैं और कीटों के काटने के निशान जैसे दिखाई देते हैं। पहले छोटे (लगभग 3 मिमी.), स्लेटी, थोड़े धंसे हुए, गोंद निकलते हुए धब्बे दिखाई देते हैं। बाद में, धब्बे बड़े हो जाते हैं और स्पष्टता से दिखने वाले धंसे हुए गड्ढे या स्कैब बन जाते हैं। अवसरवादी रोगजनक अक्सर फलों पर हमला करते हैं, जैसे मुलायम सड़ने वाले जीवाणु जो चिपचिपी, बदबूदार सड़न पैदा करते हैं।अधिक प्रतिरोधी फलों, विशेषकर कुछ स्क्वाश और कद्दू में, असमान, गाँठ जैसी बनावट उभर आती है।

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जैविक नियंत्रण

क्युकम्बर स्कैब का सीधे तौर पर कोई जैविक उपचार उपलब्ध नहीं है। कॉपर-अमोनियम यौगिक पर आधारित कवकरोधक का प्रयोग किया जाना चाहिए जो कीटों के फैलाव को कम करने के लिए जैविक रूप से प्रमाणित है।

रासायनिक नियंत्रण

यदि उपलब्ध हो, तो जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के एकीकृत दृष्टिकोण पर हमेशा विचार करें। क्लोरोथेलोनिल युक्त या कॉपर-अमोनियम यौगिक युक्त कवकरोधकों का प्रयोग करें। बीजों को कीटों से दूर रखने के लिए उनकी सतह को 0.5 % सोडियम हाइपोक्लोराइड से 10 मिनट के लिए विसंक्रमित किया जा सकता है। सी. क्युकुमेरिनम के विरुद्ध डाईथियोकार्बामेट्स, मनेब, मेंकोज़ेब, मेटिरेम, क्लोरोथेलोनिल तथा एनिलेज़ाइन वाले कवकरोधकों का प्रयोग करना चाहिए।

यह किससे हुआ

ये लक्षण क्लेडोस्पोरियम क्युकुमेरिनम कवक के कारण होते हैं, जो पौधों के अवशेषों में, मिट्टी में दरारों में या संक्रमित बीजों में सर्दियों में जीवित रहता है। वसंत के आरम्भ का संक्रमण इनमें से किसी भी स्त्रोत से आ सकता है। कवक बीजाणु पैदा करने वाली बनावट में विकसित होता है तथा बीजाणु छोड़ता है। बीजाणु कीटों, कपड़ों या उपकरणों द्वारा फैलते हैं या लम्बी दूरी तक नम हवा में उड़कर पहुंच जाते हैं। हवा में उच्च आर्द्रता तथा मध्यम तापमान संक्रमण के खतरे को बढ़ाते हैं। कवक के विकास के लिए सबसे उपयुक्त परिस्थितियां हैं, नम मौसम, बार-बार होने वाला पाला, ओस या हल्की वर्षा के साथ 17 डिग्री से. के आसपास का तापमान जो 12-25 डिग्री से. के बीच रहता है। पौधों के ऊतकों में कवक के प्रवेश के 3 से 5 दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं।


निवारक उपाय

  • प्रमाणित स्त्रोत से स्वस्थ पौधों के बीजों का प्रयोग करें।
  • यदि उपलब्ध हों, तो प्रतिरोधी प्रजातियों को लगाएं।
  • अपनी रोपाई के लिए अच्छी जलनिकासी वाले स्थान का चयन करें।
  • क्युकरबिट की खेती वसंत के उत्तरार्ध, गर्मी तथा पतझड़ के आरम्भ में करें क्योंकि स्कैब के निर्माण के लिए गर्म तापमान उपयुक्त नहीं है।
  • गैर-धारक फ़सलों, जैसे कि मक्का, के साथ चक्रीकरण की सलाह दी जाती है (2 या अधिक वर्ष)।
  • खर-पतवार तथा स्वैच्छिक क्युकरबिट पौधों पर नियंत्रण रखें।
  • खेतों में काम न करें जब पौधे वर्षा या ओस से गीले हों।
  • पौधों के मध्य पर्याप्त स्थान तथा हवा के आवागमन का धयान रखें, जिससे नमी को कम रखा जा सके।
  • अत्यधिक पानी न दें तथा स्प्रिंकलर सिंचाई से बचें।
  • लक्षणों के लिए फ़सलों पर निगरानी रखें।
  • संक्रमित पौधे तथा पौधों के अवशेषों को हटा दें तथा नष्ट (जला दें या दबा दें) कर दें।
  • क्युकरबिट को उगाने तथा काटने में प्रयुक्त बर्तनों तथा फूलों के डिब्बों के साथ-साथ अन्य उपकरणों और पदार्थों को संक्रमणरहित करें।

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