कपास

कपास की पत्तियों के ऑल्टरनेरिया धब्बे

Alternaria macrospora

फफूंद

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संक्षेप में

  • बैंगनी किनारों वाले गोल स्लेटी से लेकर भूरे धब्बे।
  • धब्बों का केंद्र धीरे-धीरे सूख जाता है और प्रायः झड़ जाता है।
  • पुराने धब्बे आपस में मिलकर बड़े, असमान क्षेत्र बनाते हैं।
  • तने पर छोटे धब्बे।
  • फूल की कलियों का झड़ना।

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कपास

लक्षण

पत्तियों के जल्द संक्रमण से बैंगनी किनारों वाले छोटे, गोलाकर, भूरे से पीले भूरे धब्बे हो जाते हैं, जिनका व्यास 1 से 10 मिमी का होता है। इन धब्बों में अक्सर एक केंद्रीयकृत छल्लेदार पैटर्न दिखाई देता है, जो पत्तियों की ऊपरी सतह पर ज़्यादा स्पष्ट रूप से नज़र आता है। जैसे-जैसे ये बढ़ते हैं, इनका केंद्र सूख जाता है और धूसर रंग का हो जाता है, और अक्सर फट कर गिर जाता है (शॉटहोल प्रभाव)। ये धब्बे एक साथ होकर जुड़ भी सकते हैं और पत्ती की सतह के बीचोंबीच अनियमित मृत क्षेत्र बनाते हैं। परंतु, नमी की स्थितियों में, फफूंद भारी संख्या में बीजाणु उत्पन्न करते हैं और छोड़ते हैं, जिससे घावों पर एक राख जैसा काला रंग दिखाई देने लगता है। तनों पर, घावों की शुरुआत छोटे धंसे हुए धब्बों के रूप में होती है, जो बाद में फोड़े बन जाते हैं, और ऊतक कटने और फटने लगते हैं। गंभीर संक्रमण के मामलों में, कलियां झड़ सकती हैं, जिसके कारण अंततः बीजकोष का विकास नहीं हो पाता है।

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जैविक नियंत्रण

सुडोमोनस फ़्लोरेसेंस (10 ग्रा/प्रति किग्रा बीज) के बीजों पर प्रयोग से उन्हें सुरक्षा दी जा सकती है। प्रत्येक 10 दिनों में 0.2% सुडोमोनस फ़्लोरेसेंस का छिड़काव करके संक्रमण को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है।

रासायनिक नियंत्रण

यदि उपलब्ध हों, तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के एक एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार करें। आमतौर पर, रोग उपज को इस हद तक कम नहीं करता है कि किसी विशिष्ट कवकनाशक उपचार का उपयोग करना महत्वपूर्ण हो जाए। गंभीर मामलों में, मानेब, जिसमे मेंकोज़ेब (2.5 ग्राम प्रति लीटर), हेक्साकोनाज़ोल (1 मिली प्रति लीटर), टेबुकोनाज़ोल और डाईफ़ेनोकोनाज़ोल का इस्तेमाल पत्ती के ऑल्टरनेरिया धब्बे को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है। स्ट्रोबिलुरिन (जैसे, ट्राइफ़्लॉक्सिस्ट्रोबिन) या स्टेरोल जैवसंश्लेषण अवरोधक (जैसे, ट्रायडिमेनोल, इपकोनाज़ोल) के साथ बीज उपचार से बीज रोगजनक के प्रतिरोधक बन सकते हैं।

यह किससे हुआ

लक्षणों का कारण फफूंद ऑल्टरनेरिया मैक्रोस्पोरा है। यदि कोई जीवित ऊतक या वैकल्पिक धारक न मौजूद हो, तो ये कपास के अवशेषों में जीवित रहता है। रोगजनक हवा में उड़ते बीजाणुओं और पानी की छींटों के ज़रिए स्वस्थ पौधों तक पहुंचता है। नमी वाले मौसम और 27 डिग्री सेल्सियस के आसपास का तापमान पत्तियों के धब्बों में बीजाणुओं के उत्पादन के लिए और संक्रमण की प्रक्रिया के लिए अनुकूल होता है। अंकुरण चरण के दौरान और मौसम में देर से, जब पत्तियों पुरानी हो जाती हैं, पौधे इसके प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। संक्रमण का जोखिम कपास की निचली पत्तियों से लेकर ऊपरी पत्तियों तक कम होता जाता है। फफूंद के लिए अनुकूल परिस्थितियों में, कपास की संवेदनशील क़िस्में पत्तियों की भारी संख्या खो सकती हैं (पर्णपात), विशेष रूप से जब बीजकोष की डंठल संक्रमित हो जाती है। पौधों में, फलों का अधिक भार या समय से पूर्व पुराना हो जाना जैसी शारीरिक या पोषण संबंधित तनाव के कारण भी लक्षणों का विकास बढ़ जाता है।


निवारक उपाय

  • यदि आपके क्षेत्र में उपलब्ध हों, तो प्रतिरोधी या सहनशील क़िस्मों का रोपण करें।
  • वायु संचार को बेहतर करने के लिए पौधों के बीच पर्याप्त स्थान छोड़ें।
  • रोग के लक्षणों के लिए नियमित निगरानी रखें।
  • पौधों के अवशेषों को निकालें और उन्हें कपास के खेत से दूर ले जाकर जला दें।
  • पौधों में तनाव न होने दें, विशेषकर पोटेशियम की कमी न होने दें।
  • गंभीर रूप से संक्रमित कपास के पौधों को हटाएं और नष्ट कर दें।
  • खेत से लंबी घास और खरपतवार हटा दें।
  • शरद में जुताई से संक्रमित पौधोें के बचे हुए अवशेषों को गलाने में मदद मिलती है।
  • अनाज जैसे गैर-धारक पौधों के साथ फ़सल चक्रीकरण का इस्तेमाल करें।

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