कपास

कपास की स्लेटी फफूंदी

Mycosphaerella areola

फफूंद

5 mins to read

संक्षेप में

  • छोटे, हल्के हरे रंग से ले कर पीले रंग के से, कोणीय धब्बे।
  • धब्बों के नीचे सफ़ेद स्लेटी चूर्ण जैसा विकास।
  • पत्तियाँ सूख जातीं हैं और समय से पहले गिर जाती हैं।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

कपास

लक्षण

लक्षण अक्सर विकास के मौसम के अंत में दिखाई देते हैं। पुरानी पत्तियों की ऊपरी सतह पर छोटे, हल्के हरे से पीले रंग के कोणीय धब्बे दिखाई देते हैं, जो शिराओं से सीमित होते हैं। निचले हिस्से पर धब्बों के बिल्कुल नीचे सफ़ेद स्लेटी पाउडरी विकास नज़र आता है। उच्च आद्रता के समय, दोनों सतह चांदी जैसे सफ़ेद फफूंद से ढक जाती हैं। गंभीर रूप से प्रभावित पत्तियां हरीत हीन हो जाती हैं, मुड़ जाती हैं, सूख जाती हैं, और उनका रंग लाल-भूरा हो जाता है। पत्तियां समय से पहले गिर जाती हैं। पत्तियों के झड़ने पौधे कमज़ोर हो जाते हैं और उसकी उपज पर प्रभाव पड़ता है। युवा पत्तियों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं। संक्रमित बीजकोष कमज़ोर हो जाते हैं, समय से पहले खुल जाते हैं या कटाई के समय खींचने या छांटने पर टूट जाते हैं।

Recommendations

जैविक नियंत्रण

सुडोमोनस फ्लोरेसेंस (10 ग्रा/किग्रा बीज) वाले उत्पादों से बीजों का उपचार करें। हर 10 दिन में इस जीवाणु के मिश्रण के छिड़काव से संक्रमण काफ़ी हद तक कम हो जाता है। अन्य जीवाणुओं (बैसिलस सर्कुलैंस और सेरेशिया मारकेसेंस) को मायकोस्फ़ेरेला की अन्य प्रजातियों को नियंत्रित करने के लिए और अन्य फसलों में संबंधित रोगों को कम कम करने के लिए उपयोग किया गया है। 3 ग्राम गीले सल्फ़र को एक लीटर में पानी में डालकर उसका छिड़काव या प्रति हेक्टेयर 8-10 किलो सल्फ़र पाउडर को छिड़कना भी संभव है।

रासायनिक नियंत्रण

उपलब्ध होने पर जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के साथ एक एकीकृत दृष्टिकोण पर हमेशा विचार करें। रोग के प्रारंभिक चरणों में जैविक उपचारों पर विचार किया जाना चाहिए। उन्नत चरणों के दौरान या गंभीरता में वृद्धि पर, प्रोपिकोनाज़ोल या हेक्साकोनाज़ोल वाले कवकनाशकों को लगाने की सलाह दी जाती है। एक सप्ताह या 10 दिन के बाद उपचार को दोहराएं।

यह किससे हुआ

लक्षण फफूंद, मायकोस्फ़ेरेला एरियोला, के कारण होते हैं, जो पिछले मौसमों के पौधे के मलबे पर या अपने आप उगने वाले पौधों पर जीवित रहते हैं। नए मौसम में संक्रमण के ये मुख्य स्रोत होते हैं। 20-30 °से. का तापमान, नम और आद्र (80% या अधिक) परिस्थितियां और रुक-रुक कर होने वाली बारिश संक्रमण को और रोग की प्रगति को बढ़ावा देते हैं। बारिश न होने पर भी, कई रातों तक ओस की उपस्थिति और साथ में लगातार ठंडा मौसम भी फफूंद को बढ़ावा देता है। बीजाणु पत्तियों की घाव में पैदा होते हैं और हवा के माध्यम से स्वस्थ पौधों तक पहुंच जाते हैं, जिससे अतिरिक्त संक्रमण होता है। बीजकोष के भरने से तुरंत पहले या उसके दौरान, मौसम के बाद के हिस्से में पौधे अधिक संवेदनशील रहते हैं।


निवारक उपाय

  • प्रतिरोधक किस्में लगाएं (बाज़ार में कई उपलब्ध हैं)।
  • जल निकासी बेहतर करने के लिए उभरी हुई भूमि पर पौधे लगाएं।
  • मौसम के दौरान बहुत जल्दी या देरी से न बोएं।
  • पौधों के बीच दूरी रखें ताकि बारिश के बाद छतरी जल्दी से सूख जाए।
  • रोग के लक्षणों के लिए कपास के खेतों पर नियमित निगरानी रखें।
  • उन पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर दें जो लक्षण दिखाती हों।
  • खेत में और उसके आसपास खर-पतवार को नियंत्रित रखें।
  • पिछले मौसमों में अपने आप से उगने वाली फसलों को नष्ट करें।
  • पत्तियों को गीला होने से बचाने के लिए एक ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करें और ऊपरी सिंचाई का उपयोग न करें।
  • पौधों को सुबह पानी दें ताकि दिन के दौरान वे सूख जाएं।
  • सूखी छतरी और सूखी मिट्टी के लिए बार-बार सिंचाई करने से बचें।
  • नाइट्रोजन उर्वरकों या खाद का अत्यधिक उपयोग न करें।
  • पौधे के मलबे को हटाएं और कपास के खेत से कुछ दूरी पर जला दें।
  • जब पौधे गीले हों, तो खेत में काम न करें।
  • गैर-मेज़बानों, जैसे अनाज, के साथ 2 या 3 साल के फसल चक्रीकरण का उपयोग करें।

प्लांटिक्स डाउनलोड करें