फफूंद
Macrophomina phaseolina
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यह रोग विकास की किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता है, लेकिन फूलों के खिलने के समय पौधे इसके प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं। इसके लक्षण आम तौर पर गर्म, शुष्क मौसम के लम्बे दौर में दिखाई देते हैं। पौधे कमज़ोर होते हैं और वे दिन के सबसे गर्म समय में मुरझाने लगते हैं और रात में आंशिक रूप से ठीक हो जाते हैं। नई पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और फलियाँ बिना भरी रह जाती हैं। जड़ों तथा तने की सड़न की विशेषता आंतरिक ऊतकों का रंग दानेदार लाल-भूरे सा बदरंग होना है। फफूंद के फैलाव का एक अन्य लक्षण तनों के आधार में बेतरतीब बिखरे हुए काले धब्बे भी हैं।
सोयाबीन की चारकोल सड़न मेक्रोफ़ोमिना फे़ज़ोलिना नामक फफूंद के कारण होती है। यह खेतों में पौधों के अवशेषों में या मिट्टी में सर्दी में भी जीवित रहता है और मौसम के आरम्भ में ही पौधों को जड़ों के द्वारा संक्रमित करता है। इसके लक्षण तब तक सुप्त रह सकते हैं, जब तक कि प्रतिकूल पर्यावरण परिस्थितियां (उदाहरण, गर्म, शुष्क मौसम) पौधों पर प्रभाव न डालें। जड़ों के आंतरिक ऊतकों को हुए नुकसान के कारण ऐसे समय पर पौधे को ऊपर तक पानी पहुंचाना प्रभावित हो जाता है जब उसे इसकी सबसे अधिक ज़रूरत होती है। अन्य फफुंदों के विपरीत, चारकोल सड़न फफूंद के कार्य और विकास के लिए शुष्क मिट्टी (27 से 35 डिग्री से.) सहायक होती है।
परजीवी फफुंद ट्राईकोडर्मा एसपीपी. अन्य फफूंदों पर आश्रित होती है और इसमें मेक्रोफ़ोमिना फेज़ोलिना शामिल है। बुवाई के समय मिट्टी में ट्राइकोडर्मा विरिडे (250 किलो केंचुआ खाद या खेती की खाद में 5 किलो) का उपयोग करने से रोग की संभावना को कम किया जा सकता है। अथवा आप फफूंद को नियंत्रित करने के लिए बैक्टीरियम राइज़ोबियम एसपी. का प्रयोग भी कर सकते हैं।
हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। बीज या पत्तियों के उपचार से कोई भी फफूंदरोधक चारकोल सड़न के लिए नियमित नियंत्रण नहीं दे सकता। बुवाई के दौरान, मिट्टी में रोगजनकों को कम करने के लिए बीजों का मेंकोज़ेब (3 ग्राम/किलो बीज) से उपचार किया जा सकता है। दो अंशों में MOP (80 किलो/हेक्टेयर) को लगाने से भी लक्षणों की गंभीरता कम हो सकती है।