मूंगफली

काली फफूँदी

Aspergillus niger

फफूंद

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संक्षेप में

  • पौधों पर काले, मटमैले पदार्थ की उपस्थिति।
  • पानी से भरे हुए शल्कों का पाया जाना।
  • शिराओं के साथ धारियों का बनना।
  • बीजों तथा मूल संधि में सड़न के लक्षण।

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मूंगफली

लक्षण

बीज बिना अंकुरित हुए सड़ जाते हैं और यदि अंकुरण होता भी है तो मूल संधि वाले हिस्से में पानी से भरे घावों के साथ सड़न आ जाती है। पौधों के क्षतिग्रस्त हिस्सों में भी पानी से भरे हुए घाव दिखाई देते हैं। लक्षण प्रभावित फसल के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। प्याज़ में, अंकुरण के आरंभिक समय में ही अंकुर मूल संधि के हिस्से से सड़ जाते हैं। कंद के गूदे वाले ऊतकों में शिराओं के साथ मटमैली फफूँदी का विकास होता है। मूँगफली में, कवक के कारण मूल संधि या शीर्ष की सड़न होती है, जिसकी विशेषता जड़ों का मुड़ना और पौधे के ऊपरी भाग में विकृति है। बेलों में, आरंभिक लक्षणों में संक्रमण के स्थान पर सुई के सिरे जैसी लाल सी रस की बूँदें शामिल हैं। फसल कटने के बाद क्षति के कारण बदरंगपन, खराब गुणवत्ता और विभिन्न फसलों के व्यावसायिक मूल्य में कमी आना देखा जाता है।

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जैविक नियंत्रण

मिट्टी को ट्राईकोडर्मा (खेतों की खाद से भरपूर) से भिंगोयें। नीम की टिकिया में भी कवकरोधी गुण होते हैं और ए. नाइजर के फैलाव को नियंत्रित करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। बीजों को रोपाई से पूर्व गर्म पानी से 60 डिग्री सेल्सियस पर 60 मिनट के लिए शोधित करें। लाल शल्क वाली प्याज की प्रजाति में फेनोलिक यौगिक की उपस्थिति के कारण फफूँद रोधी गुण होते हैं।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा निरोधात्मक उपायों के साथ, यदि उपलब्ध हों, तो जैविक उपचारों के समन्वित उपयोग पर विचार करें। यदि कवकनाशकों की आवश्यकता हो, तो मेंकोज़ेब या मेंकोज़ेब और कार्बेंन्डाज़ीन के संयोजन से कवक की उपस्थिति के स्थान को भिंगोएं या इसके विकल्प के रूप में थीरम के मिश्रण का प्रयोग करें। अन्य सामान्य उपचारों में ट्राईज़ोल तथा एकीनोकेन्डिन कवकरोधक शामिल है।

यह किससे हुआ

काली फफूँदी एक आम कवक है जो विभिन्न प्रकार के स्टार्च वाले फलों और सब्ज़ियों पर दिखाई देती है। इसके कारण खाने की बर्बादी और हानि होती है। कवक एस्पेरगिलस नाइजर, हवा, मिट्टी और पानी से फैलता है। यह आम तौर पर एक मृतजीवी होता है जो मृत और सड़े हुए पदार्थों पर जीवित रहता है किंतु यह स्वस्थ पौधों पर भी जीवित रह सकता है। यह कवक भूमध्यसागरीय, उष्णकटिबंधीय तथा उपउष्णकटिबंधीय इलाकों में मिट्टी में आम तौर पर पाया जाता है। विकास के लिए अभीष्ट तापमान 20-40 डिग्री सेल्सियस है जबकि अच्छी बढ़त 37 डिग्री सेल्सियस पर होती है। साथ ही, फलों को सुखाने की प्रक्रिया में नमी की मात्रा कम हो जाती है और शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कारण सुखे वातावरण में पनपने वाली फफूँदी के कवक को एक अनुकूल माध्यम मिलता है।


निवारक उपाय

  • अच्छी जलनिकासी वाले खेत चुनें।
  • ध्यान दें कि बीज जीवाणु मुक्त हों तथा रोपे जाने वाले पौधे स्वस्थ हों।
  • प्रतिरोधी प्रजातियों, जैसे कि लाल शल्क वाली पत्तियों वाली प्याज़ की प्रजातियों, का उपयोग करें।
  • नम मौसम के दौरान फसल की कटाई न करें।
  • परिवहन के दौरान तथा कन्दों को भंडारण के लिए ले जाते तथा बाहर निकालते समय स्थिर तापमान तथा कम नमी की परिस्थितियाँ बनाये रखें।
  • फसल की कटाई के बाद, सभी अवशेषों को एकत्रित करें तथा जला दें।
  • कटाई के बाद, तथा भंडारण और विपणन से पहले कन्दों को सावधानीपूर्वक सुखा लें।
  • गर्म मौसम में, ध्यान रखें कि आर्द्रता 80% से कम रहे।
  • एक ही स्थान पर संवेदनशील फसलों और संबंधित फसलों के रोपण के बीच 2-3 वर्ष के फसल चक्रीकरण का उपयोग करें।

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