काबुली चना

काबुली चने का शुष्क जड़ विगलन रोग

Macrophomina phaseolina

फफूंद

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संक्षेप में

  • शुष्क जड़ विगलन रोग (ड्राई रूट रॉट) तब ज़्यादा मुखर होता जब फसल नमी की कमी से जूझ रही होती है।
  • अनुकूल परिस्थितियां होने पर इसके कारण 50-100% उपज हानि हो सकती है।
  • रोगाणु बीज और मिट्टी दोनों से फैलता है।
  • डंठल और पत्तियों का मुरझाना और हरा रंग उड़ना जैसे लक्षण पुष्पन के बाद की अवस्था में स्पष्ट नज़र आते हैं।

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काबुली चना

लक्षण

काबुली चने के खेतों में रोग की शुरुआत जहां-तहां पौधों के सूखने के रूप में नज़र आती है। रोग के पहले लक्षण पत्तियों का पीला पड़ना और सूखना हैं। ये संक्रमित पत्तियां आम तौर पर एक या दो दिन के अंदर गिर जाती हैं, और पूरा पौधा अगले दो से तीन दिन में मर जाता है। संक्रमित पौधों की पत्तियां और तने आम तौर पर भूसे के रंग के होते हैं। हालांकि कुछ मामलों में निचली पत्तियां और तनों में भूरा रंग दिखता है। मुख्य जड़ गहरे रंग की और सूखी मिट्टी में बहुत भंगुर होती है।

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जैविक नियंत्रण

पत्ती, मुख्य तना, फल का गूदा और तेल के अर्क, जैसे कि नीम के तेल का जलीय अर्क, मिट्टी जनित रोगाणु एम. फ़ेज़ोलिना की वृद्धि अवरुद्ध करते हैं। प्रतिरोधी रोगाणु/जैव-नियंत्रक एजेंट, जैसे कि ट्राईकोडर्मा विर्डी और ट्राईकोडर्मा हर्ज़ियेनम, भी रोग लगने में कमी लाने में मददगार होते हैं। बीज उपचार के लिए टी. हर्ज़ियेनम + पी. फ़्लोरेसेंस (दोनों 5 ग्राम/किग्रा. बीज की दर से) के संयोजन का इस्तेमाल करें और फिर बुवाई के दौरान मिट्टी में 2.5 किग्रा./250 किग्रा. की दर से समृद्ध टी. हर्ज़ियेनम + पी. फ़्लोरेसेंस पशु खाद के साथ मिलाएं।

रासायनिक नियंत्रण

रोकथाम उपायों के साथ-साथ उपलब्ध जैविक उपचारों को लेकर हमेशा एक समेकित कार्यविधि पर विचार करें। शुष्क जड़ विगलन पर रासायनिक नियंत्रण प्रभावी नहीं है क्योंकि एम. फ़ेज़ोलिना के कई तरह के मेज़बान होते हैं और यह मिट्टी में लंबे समय तक जीवित रहता है। फफूंदनाशकों से बीज का उपचार काबुली चने को नुकसान से बचाने में कुछ हद तक प्रभावी है। काबुली चना विशेष तौर पर नवांकुर अवस्था में रोग के प्रति संवेदनशील होता है। कार्बेंडाज़िम और मैंकोज़ेब फफूंदनाशकों से बीज उपचार के बाद मिट्टी गीली करने से रोग लगने की संभावना काफ़ी हद तक घट जाती है।

यह किससे हुआ

यह एक मिट्टी जनित रोग है, जो कि मिट्टी-जनित फफूंद मैक्रोफ़ोमिना फ़ेज़ोलिना के बीजाणुओं से फैलता है। जब आसपास का तापमान 30-35 डिग्री सेल्सयस के बीच होता है, तब लक्षण अचानक प्रकट होते हैं। तापमान में बढ़ोतरी और बार-बार नमी की कमी के कारण गर्म और नमी वाले क्षेत्रों में फफूंद का प्रकोप और बढ़ जाता है। रोग आम तौर पर पुष्पन की अंतिम अवस्था और फली आने के चरण में प्रकट होता है, जिसमें संक्रमित पौधे पूरी तरह सूखे नज़र आते हैं। मेज़बान फसल की गैर-मौजूदगी में, ये मिट्टी में एक प्रतिस्पर्थी मृतजीवी (सैप्रोफ़ाइट) के रूप में उपलब्ध जैविक सामग्री पर जीवित रहता है। अनुकूल परिस्थितियों में, एम. फ़ेज़ोलिना 50-100% उपज हानि कर सकता है।


निवारक उपाय

  • यदि उपलब्ध हों, तो सहनशील किस्मों का चुनाव करें।
  • परिपक्वता के दौरान उच्च तापमान से और इस प्रकार संक्रमण से बचने के लिए, जल्द पकने वाली किस्मों की बुवाई करें।
  • रोग के लक्षणों के लिए खेत की लगातार निगरानी करें।
  • मिट्टी में अच्छी नमी बनाए रखें।
  • गहरी जुताई करें और संक्रमित पौधों के कूड़ा-कर्कट को मिट्टी से हटाकर नष्ट कर दें।
  • फसल काटने के बाद अपनी मिट्टी को रोगाणुविहीन करने के लिए मिट्टी का सौरीकरण करें।
  • अपनी फसल को उभरी क्यारियों में उगाएं और रोपण से पहले हल-रेखा बनाएं।
  • गैर-मेज़बान फसलों, जैसे कि ज्वार या मेथी, के साथ तीन वर्षीय फसल चक्रीकरण योजना बनाएं।

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