हल्दी

हल्दी की पत्तियों के धब्बे

Colletotrichum capsici

फफूंद

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संक्षेप में

  • कत्थई रंग के केंद्र के साथ भूरे धब्बे।
  • पत्तियाँ सूख कर मुरझा जाती हैं।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें
हल्दी

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लक्षण

शुरुआती लक्षण पत्तियों पर पाए जाने वाले भूरे रंग के केंद्रों के साथ लंबे-गोल पीले धब्बे होते हैं। हर धब्बा छोटा, 1-2 मिमी व्यास का होता है। बड़े होकर धब्बे आपस में जुड़ जाते हैं और आमतौर पर लगभग 4-5 सेंमी लंबाई और 2-3 सेंमी चौड़ाई के हो जाते हैं। संक्रमण के उन्नत चरणों में, काले बिंदु संकेंद्रित वलय बन जाते हैं। भूरे केंद्र पतले हो जाते हैं और अंततः फट जाते हैं। गंभीर मामलों में, पत्तियों के दोनों किनारों पर सैकड़ों धब्बे उभर आते हैं। गंभीर रूप से प्रभावित पत्तियाँ मुरझा कर सूख जाती हैं।

Recommendations

जैविक नियंत्रण

टी. हर्ज़ियेनम, टी. विरिडे जैसे रोग के प्रकोप में कमी के प्रमाण दिखाने वाले जैव-कारकों का प्रयोग करें। साथ ही, पी. लोंगिफ़ोलिया के पौधे का अर्क रोग नियंत्रण के लिए प्रभावी है।

रासायनिक नियंत्रण

यदि उपलब्ध हों, तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के इस्तेमाल के एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार करें। बीज सामग्री को 3 ग्राम/लीटर पानी के दर से मैन्कोज़ेब या 1 ग्राम/लीटर पानी के दर से कार्बेन्डाज़िम से 30 मिनट तक उपचारित करें और बिजाई से पहले छाया में सुखाएं। हर पखवाड़े, 2.5 ग्राम/लीटर पानी के दर से मैंकोज़ेब या 1 ग्राम/लीटर पानी के दर से कार्बेन्डाज़िम का 2-3 बार छिड़काव करें।

यह किससे हुआ

रोग राइज़ोम के शल्क पर उपस्थित कवक के कारण होता है जो बुवाई के दौरान संक्रमण का प्राथमिक स्रोत होता है। अतिरिक्त प्रसार हवा, पानी और अन्य भौतिक और जैविक कारकों के कारण होता है। रोगाणु संक्रमित मलबे पर एक साल तक जीवित रह सकते हैं।


निवारक उपाय

  • सुगुना और सुदर्शन जैसी सहनशील किस्मों की खेती करें।
  • रोग मुक्त क्षेत्रों से बीज सामग्री का चयन करें।
  • नियमित फसल चक्रीकरण अपनाएं।
  • मिर्च जैसे वैकल्पिक मेज़बानों के बगल में खेती से बचें।
  • रोग को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित और सूखे पत्तों को इकट्ठा करके जला दें।

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