Taphrina maculans
फफूंद
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रोग आमतौर पर पत्तियों की निचली सतह पर दिखती है। 1-2 मिमी चौड़ाई के छोटे धब्बे होते हैं, जो ज़्यादातर आयताकार होते हैं। धब्बे शिराओं के बगल में पंक्तियों में व्यवस्थित रहते हैं और आपस में जुड़कर अनियमित घाव बनाते हैं। सबसे पहले, वे हल्के पीले रंग के रूप में दिखाई देते हैं और बाद में मैले पीले रंग के हो जाते हैं। संक्रमित पत्तियां विकृत हो जाती हैं और लाल-भूरे रंग की दिखाई देती हैं। गंभीर मामलों में, पौधे झुलसे हुए दिखाई देते हैं और प्रकंद पैदावार में कमी आती है।
रोग की गंभीरता कम होने पर, स्यूडोमोनस फ़्लोरेसेंस और ट्राइकोडर्मा हर्ज़ियेनम युक्त उत्पाद संक्रमण को कम कर सकते हैं। अशोक (पॉलीएंथिया लॉन्गीफ़ोलिया) या घर पर बनाया हुआ प्याज़ का अर्क भी संक्रमण को कम कर सकते हैं।
अगर उपलब्ध हो तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के मिलेजुले दृष्टिकोण पर विचार करें। 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से मैंकोज़ेब या 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कार्बैन्डाज़िम से बीजों का 30 मिनट तक उपचार करें और बुवाई से पहले उन्हें छाया में सूखने दें।
कवक आमतौर पर वायु में रहता है और प्राथमिक संक्रमण निचली पत्तियों पर होता है। रोगाणु खेत में मौजूद मेज़बान फसल की सूखी पत्तियों के अवेशष में जीवित रहता है। अतिरिक्त संक्रमण निरंतर परिपक्व होते हुए बीजाणु युक्त कोशिकाओं में मौजूद बीजाणुओं से होता है, जो नई पत्तियों को संक्रमित करते हैं। गर्मियों के मौसम में, रोगजनक पत्तियों के कचरे में मौजूद बीजाणु युक्त कोशिकाओं तथा मिट्टी और गिरी हुई पत्तियों में उपस्थित सूखे बीजाणुओं में जीवित रहता है। मिट्टी की उच्च नमी, 25 डिग्री तापमान और पत्तियों के गीलेपन के कारण रोग को मदद मिलती है।