सोयाबीन

सोयाबीन पच्चीकारी विषाणु (मोज़ेक वायरस)

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वाइरस

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संक्षेप में

  • पत्तियों पर हल्के तथा गहरे हरे पच्चीकारी नमूने विकसित हो जाते हैं।
  • झुर्रीदार पत्तियाँ नीचे की ओर गोल मुड़ जाती हैं।
  • पत्तियों का झड़ना, पौधे का विकास रुक जाना, तथा फलियों की संख्या कम होना और आकार का छोटा होना।

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सोयाबीन

लक्षण

पौधे किसी भी समय संक्रमित हो सकते हैं। प्रतिरोधक क़िस्मों में कोई स्पष्ट लक्षण दिखाई नहीं देता। संवेदनशील पौधों में, संक्रमण की प्रारंभिक अवस्था की विशेषता नई तेज़ी से बढ़ने वाली पत्तियों में हल्के तथा गहरे हरे रंग की मोज़ेक की बनावट बनना है। बाद में, ये बहुत अधिक चित्तीदार, शिराओं के पास झुर्रीदार तथा नीचे की ओर मुड़ने लगती हैं। इसके साथ ही पत्तियों का गिरना, पौधों का छोटा रह जाना तथा फलियों की कम संख्या तथा छोटा आकार देखा जाता है। ये लक्षण ठंडे मौसम में सबसे गंभीर होते हैं तथा 32 डिग्री सेल्सियस से अधिक के तापमान पर पहचान में नहीं आते हैं।

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जैविक नियंत्रण

माफ़ कीजियेगा, हम एस.एम.वी. के विरुद्ध कोई अन्य वैकल्पिक उपचार नहीं जानते हैं। यदि आप कुछ जानते हों जिससे इस रोग से लड़ने में सहायता मिलती हो, तो कृपया हमसे संपर्क करें। हम आपसे जानकारी प्राप्त करने की प्रतीक्षा करेंगे।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। विषाणुजनित रोगों का रासायनिक उपचार संभव नहीं है। कीटनाशकों के उपयोग से माहू की आबादी को नियंत्रित करके विषाणु के फैलाव को रोकना प्रभावी नहीं होता है।

यह किससे हुआ

विषाणु के अनेक धारक हैं, जिनमें मटर, सेम तथा अनेक खरपतवार शामिल हैं। माहू, संक्रमित बीजों से रोग फैलता है तथा समीपवर्ती धारकों पर जीवित रह सकता है। विकास के आरंभिक चरण में संक्रमण के कारण उपज में हानि, बीजों की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ना तथा बीजों का कम अंकुरण और कम ग्रंथियों का बनना होता है। बाद के मौसम में होने वाले संक्रमण कम गंभीर होते हैं। अधिक उपज की संभावना, अच्छे उर्वरण तथा ज़्यादा मात्रा में माहू वाले खेत विषाणुओं के फैलने के लिए अनुकूल होते हैं।


निवारक उपाय

  • प्रमाणित, विषाणु-मुक्त बीजों का प्रयोग सुनिश्चित करें।
  • प्रतिरोधक तथा सहनशील क़िस्मों का उपयोग करें।
  • यदि संभव हो, तो जल्द बुआई करें।
  • सोयाबीन का चक्रीकरण विषाणु के अन्य धारकों के साथ न करें।
  • खेत के अन्दर तथा चारों तरफ़ खरपतवारों पर नियंत्रण रखें।
  • पौधों के आरंभिक विकास की अवस्था में खेतों में आवश्यकता से अधिक खाद का प्रयोग न करें।

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