Lobesia botrana
कीट
5 mins to read
वसंत के अंत और ग्रीष्म ऋतु के प्रांरभ में, प्रथम पीढ़ी के लार्वा अकेली पुष्प कलिकाओं को खाते हैं। बाद में प्रत्येक लार्वा अनेक कलियों को रेशम के धागे से बांधकर जाल बना देते हैं और इस स्पष्ट दिखने वाली संरचना को केशिकागुच्छ (ग्लोमेरयूलस) कहा जाता है। अपने निवास के भीतर ही रहकर जैसे-जैसे वे फूलों को खाते हैं, तो स्पष्ट दिखने वाला बहुत सारा कीटमल भी उत्पन्न करते हैं। दूसरी पीढ़ी के लार्वा (ग्रीष्म ऋतु के मध्य में) पहले हरे अंगूरों को बाहर से खाते हैं। बाद में, वे उन्हें भेदते हैं और केवल त्वचा व बीजों को छोड़कर , उन्हें खोखला कर देते हैं। तीसरी पीढ़ी के लार्वा (ग्रीष्म ऋतु के अंत समय में) अंगूरों और गुच्छों के भीतर भोजन करके उन्हें सूखा देते हैं और सर्वाधिक हानि का कारण बनते हैं। अंगूरों के बीच में रेशम के धागे बुने हुए होने के कारण, ये लार्वा गिरते नहीं हैं। खाये जाने के कारण हुई क्षति से उन्हें अनेक अवसरवादी कवक और किशमिश के कीड़े (कैड्रा फ़िगुलिलेला), फलों के कीट और चींटियों जैसे कीड़ों के आक्रमण का सामना करना पड़ता है। वर्धन बिंदुओं, टहनियों और पत्तियों पर लार्वा द्वारा क्षति असामान्य है।
अंगूरों में इस कीट की जनसंख्या को नियंत्रण में रखने के लिए अनेक जैविक कीटनाशकों के उपयोग का सुझाव दिया जाता है। इनमें प्राकृतिक तरीके से कीट नियंत्रण उत्पाद, स्पिनोसाइन और बैसिलस थुरिंजियेंसिस से युक्त मिश्रण सम्मिलित हैं। टेकिनिड मक्खियों जैसी कुछ परजीवी प्रजातियों और कुछ प्रकार के परजीवी ततैये (100 से अधिक) भी एल. बोट्राना की जनसंख्या को नियंत्रण में रखने के लिए प्रभावी रूप से उपयोग किए जा सकते हैं। परजीवियों की कुछ प्रजातियां अंगूर के दाने के कीट के लार्वा में 70% तक मृत्यु का कारण बन सकती हैं। यह प्रजातियां अंगूर की बेल पर डाली जा सकती हैं। फ़ेरोमोन वितरण की तकनीक से पतंगों को समागम से रोका जा सकता है।
यदि उपलब्ध हों, तो सदैव जैविक उपायों के साथ-साथ सुरक्षात्मक उपायों का एकीकृत दृष्टिकोण अपनाएं। एल. बोट्राना की जनसंख्या को नियंत्रण में रखने के लिए विस्तृत पहुँच वाले कीटनाशकों (ऑर्गैनोक्लोरीन, कार्बामेट, ऑर्गैनोफ़ॉस्फ़ेट और पायरेथ्रोइड) का उपयोग किया जा सकता है, किन्तु ये परजीवी प्रजातियों और उनके लार्वा को भी मार देंगे। इन उपायों को रासायनिक और जैविक नियंत्रण के साथ मिलाकर उपयोग करना चाहिए।
लोबिसिया बोट्राना (Lobesia botrana) कीट की इल्ली की भक्षण गतिविधि के कारण लक्षण प्रकट होते हैं। प्यूपा अपनी सर्दियां रेशमी कोकून में छाल के नीचे, सूखी पत्तियों के नीचे, मिट्टी के दरारों में अथवा अंगूर की बेलों के कचरे में बिताता है। वयस्कों में आगे के पंख स्लेटी, भूरे और काले धब्बों के साथ दूधिया रंग और चित्तीदार स्वरूप के होते हैं। पंखों की दूसरी जोड़ी स्लेटी रंग की झालरदार होती है। जब 10 -12 दिनों के समय के लिए तापमान का स्तर 10 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा रहता है, तो वयस्कों की प्रथम पीढ़ी निकलती है। 26-29 डिग्री सेल्सियस तापमान और 40 से 70% तक आद्रता इनके विकास के लिए इष्टतम स्थिति है। लार्वा कली में प्रवेश करने के लिए, फूल के खोलों को छेद देता है और अंगूरों के गुच्छे के डंठल में भी प्रवेश करके उनके सूखने का कारण बन सकता है। बड़ी इल्लियां रेशम के धागों से फलों को बांधकर जाल बना देती हैं, और फिर उन्हें कुतर कर उनमें प्रवेश कर जाती हैं। क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु की समयावधि पर निर्भर करते हुए, प्रति वर्ष इस कीट की 2-4 पीढ़ियां हो सकती हैं।