Leucinodes orbonalis
कीट
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पहले लक्षण लार्वा के शुरुआती भक्षण से टहनियों के सिरों का मुरझाना है। बाद में, फूल, कलियां और तने भी प्रभावित हो जाते हैं। तरुण लार्वा नई पत्तियों की मध्यशिरा और मुलायम टहनियों के अंतिम हिस्से में छेद करके तने में घुस जाते हैं और संवहनी ऊतकों को मार देते हैं (डेड हार्ट)। वयस्क लार्वा फलों में छेद करते हैं और छोटे-छोटे अंदर घुसने के छेदों पर सूखा मल छोड़ते हैं। फल अंदर से खोखला, बदरंग और कीट मल से भरा होता है। गंभीर प्रकोप होने पर पौधा मुरझा कर कमज़ोर पड़ सकता है जिससे उपज को नुकसान होता है। ऐसे पौधों में लगे फल, खाने के लिए अनुपयुक्त हो सकते हैं। क्षति तब ज़्यादा होती है जब कई पीढ़ियों के बाद कीटों की अच्छी-ख़ासी आबादी हो जाती है।
कई परजीवी एल. ऑर्बोनैलिस के लार्वा को खाते हैं, जैसे कि प्रिस्टोमेरस टेस्टैसियस, क्रिमैस्टस फ्लैवोऑर्बिटैलिस और शिरैकिया स्कोएनोबिक। सूडोपेरीकीटा, ब्रैकोनिड्स और फैनरोटोमा की प्रजातियों को भी बढ़ावा दिया जा सकता है या खेत में छोड़ा जा सकता है। कीट लगे फलों पर नीम के बीजों (निबौरी) के रस का 5% की दर से या स्पाइनोसैड का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कीट को अंडे देने से रोकने के लिए ऊपरी 10 सेमी. किनारों पर चिपचिपे पदार्थ जैसे कि गोंद लगे नेट का इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर गोंद उपलब्ध न हो तो नेट को 2 मी. की ऊंचाई पर 40 सेमी. फैलाएं और फिर बाहर निकाल कर सीधे लगे नेट से नीचे कर 80-85 डिग्री कोण पर फैलाते जाएं।
हमेशा एक समन्वित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। संक्रमण की अवस्था और सीजन पर निर्भर करते हुए उपचार अलग-अलग होगा। सेविमॉल (0.1%), एंड्रिन (0.04%), मैलाथियान (0.1%) का नियमित अंतराल पर छिड़काव इस कीट का प्रकोप काबू में रखता है। फल पकने और तोड़ने के समय सिंथेटिक पायरेथ्रॉयड और कीटनाशकों का इस्तेमाल न करें।
क्षति का कारण पतंगा ल्यूसिनोड्स ऑर्बोनैलिस के लार्वा हैं। बसंत में, मादाएं दूधिया रंग के अंडे एकल रूप से या समूहों में पत्ती की निचली तरफ, तनों, फूलों की कलियों या फल के आधार पर देती हैं। 3 से 5 दिन बाद अंडों से लार्वा बाहर निकल आते हैं और आम तौर पर सीधे फल में छेद करते हैं। पूरी तरह विकसित लार्वा सुदृढ़ तथा गुलाबी रंग और भूरे सिर वाला होता है। भक्षण पूरा होने पर तनों, सूखी टहनियों या ज़मीन पर गिरी पत्तियों पर बुने गए धूसर, मजबूत ककून में प्यूपा बनता है। प्यूपा अवस्था 6 से 8 दिन की होती है, जिसके बाद वयस्क प्रकट होते हैं। वयस्क पतंगा दो से पांच दिन जीवित रहता है और मौसम पर निर्भर करते हुए अपना 21-43 दिन का जीवन चक्र पूरा करता है। वर्ष के सक्रिय समय में इनकी पांच पीढ़ियां तक हो सकती हैं। सर्दियों में लार्वा मिट्टी में शीत-शयन करता है। यह कीट सोलेनैसी परिवार के कई अन्य पौधों जैसे टमाटर और आलू को भी खाता है।