गेहूं

गेहूं की बाली का गोलकृमि (कॉकल ईलवर्म)

Anguina tritici

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संक्षेप में

  • हल्की हरी, बिगड़ी आकृति वाली पत्तियां और कम विकसित पौधे।
  • छोटी बालियां जिनके दाने टेढ़े-मेढ़े कोण पर निकले रहते हैं।
  • किल्लों में बेढंगे और टेढ़े-मेढ़े फोड़ों की मौजूदगी।

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1 फसलें

गेहूं

लक्षण

कुछ मामलों में ए. ट्रिटिकि से ग्रस्त पौधा कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दर्शाता है। लक्षण दर्शाने वाले पौधों में, ऊपरी सतह पर उभरे हुए चकत्तों और निचली तरफ़ निशानों के साथ पत्तियों की आकृति कुछ बिगड़ी हुई हो सकती है। अन्य लक्षणों में झुर्रियां पड़ना, मुड़ना और किनारों का मध्यशिरा की ओर सिकुड़ना या अन्य विकृतियां शामिल हैं। पौधे हल्के हरे या हरिमाहीन, कम विकसित या कम ऊंचे रह जाते हैं और तने मुड़ सकते हैं। किल्ले छोटे रह जाते हैं और उनके दाने अजीब कोणों पर निकले हुए होते हैं। यह लक्षण राई के किल्लों में नहीं नज़र आता है। कुछ बीज फोड़ों में बदल जाते हैं, जिसमें सूत्र कृमियों के सूखे समूह होते हैं। ये फोड़े स्वस्थ बीज की तुलना में छोटे, मोटे और हल्के होते हैं, और इनका रंग हल्के भूरे से लेकर पुराना पड़ने पर काला तक हो सकता है (पीले भूरे होने के बजाय)।

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जैविक नियंत्रण

बीजों को नमक के घोल (1 किग्रा./5 ली. पानी) में डालकर ज़ोर से हिलाएं। इस तरह के स्नान में, रोग वाले बीज और अवशेष पानी की सतह पर आ जाते हैं, जिन्हें एकत्र कर सूत्र कृमियों को मारने के लिए भाप दिया जाता है, पानी में उबाला जाता है, या रसायनों में डाला जाता है। बर्तन के तले में बैठ जाने वाले स्वस्थ बीजों को कई बार साफ़ पानी से धोया जाता है और फिर बोने क लिए सुखाया जाता है। बीजों को 54-56° सेल्सियस पर गर्म पानी में 10-12 मिनट रखने से भी सूत्र कृमि मर जाते हैं। अंत में, फोड़ों को हाथ से छलनी का इस्तेमाल कर हटाया जा सकता है क्योंकि ये बीजों से छोटे होते हैं। ए. ट्रिटिकि पर नियंत्रण के लिए सूत्र कृमि नाशक पौधे उतने प्रभावी नहीं होते हैं जितना कि बीजों की सफ़ाई करना।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा एक समन्वित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। इस कृमि के लिए किसी रासायनिक नियंत्रण की सलाह नहीं दी जाती है। पानी में डालकर, गर्म पानी से उपचार करके या ग्रेविटी टेबल सीड प्रोसेसिंग से फोड़ों (बीजों से हल्का और कम भारी) से छुटकारा दिलाने वाली बीज सफ़ाई और बीज प्रमाणन योजनाओं से रोग से मुक्ति पाई जा चुकी है।

यह किससे हुआ

लक्षणों का कारण सूत्र कृमि एंगिना ट्रिटिकि है। छोटे सूत्र कृमि पानी की परत में पौधे तक पहुंचते हैं, मेरीस्टेम (मुख्य तना जहां से बाकी पौधे के हिस्से निकलते हैं) पर हमला करते हैं और नए फूलों में घुस जाते हैं। गेहूं, जौ और राई मुख्य मेज़बान हैं, जबकि जई, मक्का और ज्वार नहीं हैं। एक बार पक रहे बीज में घुसने पर ये फोड़ा बनाना शुरू कर देते हैं। ये यहां बस जाते हैं और केंचुली बदलकर वयस्क बन जाते हैं। समागम के बाद मादा अंडे देती है, जो फोड़े के अंदर फूटते हैं। ये अंडे बाद में सूख जाते हैं और अगले मौसम तक निष्क्रिय बने रहते हैं। रोपण और फ़सल कटाई के वक़्त फोड़े बीज के साथ दूर-दूर तक फैल जाते हैं। सूत्र कृमि नम मिट्टी और पानी के संपर्क में आने पर अपना जीवन चक्र फिर शुरू कर देते हैं। ठंडा और नम मौसम इसके विकास को विशेष तौर पर बढ़ावा देता है।


निवारक उपाय

  • अच्छी गुणवत्ता वाले प्रमाणित बीजों का इस्तेमाल करें।
  • सहनशील किस्मों का चुनाव करें (बाज़ार में कई उपलब्ध हैं)।
  • अगर संभव हो, तो एक वर्ष के लिए खेत को खाली छोड़ने की योजना बनाएं।
  • रोगाणु को अगली फ़सल तक पहुंचने से रोकने के लिए गैर-मेज़बान पौधों के साथ कम से कम एक वर्ष का फ़सल चक्रीकरण करें।

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