केला

कीटनाशकों से झुलसना

Pesticide Burn

अन्य

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संक्षेप में

  • पत्तियों पर दाग़ या बड़े धब्बे।
  • पत्तियों में पीलापन या मुरझाना।
  • झुलसन या शीर्ष का जलना।

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केला

लक्षण

इसे पादप विषाक्तता (फ़ायटोटॉक्सिटी) भी कहते हैं। इसके लक्षण पौधों पर रसायनों के दुरूपयोग अथवा गलत प्रयोग के कारण होते हैं। लक्षणों में पत्तियों पर धब्बे, परिगलित दाग़, किनारों तथा शीर्ष का झुलसना हैं जिसे कभी-कभी रोग, कीटों, कीड़ों और वातावरण की परिस्थितियों के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों द्वारा क्षति के जैसा समझा जाता है। हवा के द्वारा अन्य अलक्षित या संवेदनशील पौधों पर भी क्षति हो सकती है। पादप विषाक्तता तब भी होती है जब असंगत रसायनों का पौधों पर एक साथ प्रयोग किया जाता है।

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जैविक नियंत्रण

जब कीट या रोग पौधों को अधिक क्षति पहुंचाते हों तब कीटनाशकों का प्रयोग करने की अपेक्षा कभी-कभी क्षतिग्रस्त भाग को काट देना अथवा उसका पुनः रोपण करके अगली बार समस्या के लिए निवारक उपाय सीखना अधिक उचित होता है।

रासायनिक नियंत्रण

यदि उपलब्ध हो, तो निवारक उपायों और जैविक उपचार के साथ एक एकीकृत दृष्टिकोण पर हमेशा विचार करें। कीटनाशकों से झुलसने के लिए कोई जैविक नियंत्रक उपाय उपलब्ध नहीं हैं। निर्देशों के अनुरूप कीटनाशकों का प्रयोग सुनिश्चित करें। अत्यधिक चोट लगने पर यूरिया का 10 ग्राम/ली की दर से या पोलीफ़ीड का 10 ग्राम/ ली कि दर से छिड़काव करें।

यह किससे हुआ

जब पौधों पर प्रतिकूल परिस्थितियों में कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है तब प्रायः पादप विषाक्तता होती है। सामान्यतः उच्च तापमान तथा आर्द्रता कीटनाशकों (कीटनाशक तथा कवकरोधी; विशेषतः साबुन, तेल और सल्फ़र यौगिक) द्वारा क्षति की संभावना को बढ़ा देती हैं। ठन्डे नम मौसम में कॉपर कवकरोधकों द्वारा क्षति की संभावना बढ़ जाती है। छिड़काव का प्रयोग शांत, शुष्क तथा ठंडी परिस्थितियों में किया जाना चाहिए। अधिकाँश कीटनाशकों का प्रयोग 25 डिग्री से. से कम तापमान पर किया जाना चाहिए। जैविक तनाव की परिस्थितियों (सूखे, कीटों द्वारा क्षति) के समय रसायनिक क्षति की अधिक संभावना होती है। ऊष्ण, आर्द्र तथा बादलों से घिरा मौसम, जिसमें सूखने की क्षमता कम होती है, भी ऐसे पौधों को अधिक संवेदनशील बना देता है जो आम तौर पर प्रतिरोधी होते हैं।


निवारक उपाय

  • यदि कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक हो तो उसका प्रयोग लेबल पर दिए गए निर्देशों के अनुरूप ही करें।
  • पौधों की संवेदनशीलता तथा कीटनाशकों के मिश्रण के बारे में हमेशा ध्यान रखें।
  • जब कीट या रोग पौधों को अधिक क्षति पहुंचाते हों तब कीटनाशकों का प्रयोग करने की अपेक्षा कभी-कभी क्षतिग्रस्त भाग को काट देना उचित होता है।

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