कपास

पैरा विगलन

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संक्षेप में

  • पैरा विगलन या पैरा विल्ट एक दैहिक विकार है, जो अधिकतर जलभराव वाले खेतों में तेज़ी से बढ़त वाले पौधों को प्रभावित करता है।
  • लक्षणों में पत्तियों का मुरझाना और बदरंग होना शामिल है।
  • विकार बढ़ने पर पत्ती का रंग हरिमाहीन से कांसे के रंग में/लाल रंग में बदल जाता है।

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लक्षण

पैरा विल्ट या पैरा विगलन, जिसे 'अचानक होने वाली कुम्हलाहट' के रूप में जाना जाता है, खेतों में बेतरतीब ढंग से फैलती है तथा असामयिक तौर पर होती हैं। इस विकार में स्वाभाविक तौर पर खेतों में कोई संरचनाएं नहीं होती हैं और इसे लेकर अक्सर लोगों में रोगाणुओं की वजह से होने वाली बीमारियों का भ्रम रहता है। मुख्य लक्षणों में पत्तियों की कुम्हलाहट और बदरंग होना शामिल है। पत्तियां का रंग हरिमाहीन से बदलकर पीतल जैसे रंग वाला या लाल हो सकता है और बाद में ऊतक सूखने लगते हैं। यह विकार विशेष रूप से ऐसे पौधों को प्रभावित करता है जो तेज़ी से बढ़ते हैं, जिनके बड़े छत्र होते हैं, और काफ़ी भारी बीजकोष होते हैं। बीजकोषों और पत्तियों का शुरुआती दौर में गिरना और बीजकोषों का शुरुआत में ही प्रस्फुटन हो सकता है। पौधे दुबारा ठीक हो सकते हैं, लेकिन उपज नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी।

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जैविक नियंत्रण

पैरा विल्ट के लिए कोई जैविक नियंत्रण वाले उपाय नहीं हैं। इस विकार से बचने के लिए, आवश्यक है कि सिंचाई और कपास के पौधों के उर्वरण को समायोजित किया जाए और मिट्टी से जल निकासी की अच्छी योजना बनायें।

रासायनिक नियंत्रण

यदि उपलब्ध हो, तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के एकीकृत दृष्टिकोण को अपनाएं। पैरा विल्ट के लिए कोई रासायनिक उपचार नहीं हैं। परंतु, आप जल निकासी प्रणाली के माध्यम से अधिक पानी को निकालने से शुरुआत कर सकते हैं। इसके बाद, 1 लीटर पानी में 15 ग्राम यूरिया, 15 ग्राम म्यूरेट पोटाश और 2 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड लेकर एक घोल तैयार करें। पौधे के जड़ वाली जगह के आसपास 100-150 मिलीलीटर यह घोल डालें। यह घोल पौधे को तत्काल पोषक तत्व प्रदान करता है और कवकनाशक फफूंद संक्रमण को रोकता है।

यह किससे हुआ

पैरा विल्ट या पैरा विगलन एक दैहिक विकार है, जिसका मतलब है कि कोई भी कवक, बैक्टीरिया, विषाणु या ऐसा कुछ इसमें शामिल नहीं है। ये कपास के पौधों में अन्य बीमारियों या बलाघात की तरह नहीं होता, बल्कि कुछ ही घंटों में और विशिष्ट स्थानिक संरचनाओं के बिना ही विकसित हो जाता है। बेतरतीब ढंग से फैलना और अचानक हो जाना इसके विशिष्ट संकेत हैं। अब यह जाना जा चुका है कि इस विकार का कारण है मूसलधार बारिश या ज़रूरत से ज़्यादा सिंचाई के बाद जड़ के आसपास पानी का अचानक जमा होना, और उसके बाद गर्म तापमान और चिलचिलाती धूप होना। इसमें पौधे की तेज़ वृद्धि और पोषक तत्वों का असंतुलन भी शामिल है। चिकनी मिट्टी या ख़राब जल निकासी वाली मिट्टी पौधों में इस विकार की संभावना को बढ़ाता है।


निवारक उपाय

  • ऐसी क़िस्मों या संकरों का रोपण करें जो पैरा विगलन के प्रति सहनशील हों।
  • जल भराव को रोकने के लिए खेतों की अच्छी जल निकासी के प्रति आश्वस्त हो लें।
  • एक विशिष्ट बढ़त की अवस्था और/या शुष्क स्थितियों के कारण जब तक अतिआवश्यक न हो बहुत ज़्यादा या बहुत बार सिंचाई न करें।
  • फ़सलों की नियमित निगरानी करें, विशेष रूप से जब भारी बारिश के बाद उच्च तापमान और चिलचिलाती धूप हो।
  • अत्यधिक बढ़त से बचने के लिए अधिक मात्रा में उर्वरण न करें (जैसे बड़े छत्र और भारी बीजकोष)।
  • रोग के कारणों (भारी बारिश और धूप) से बचने के लिए बुवाई की तिथियों में बदलाव करें।

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