धान

धान पर छाने वाली इल्लियों का समूह (पैडी स्वार्मिंग कैटरपिलर)

Spodoptera mauritia

कीट

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संक्षेप में

  • पत्तों पर गोल छेद, पत्तियों का पिंजर बचना और तने से शुरू होकर पौधे का धीरे-धीरे मरना (स्टेम डाइबैक)।
  • विकट मामलों में, रातोंरात फ़सल की बर्बादी।
  • इल्लियों के दलों का एक से दूसरे खेतों में जाना।

में भी पाया जा सकता है

1 फसलें

धान

लक्षण

इल्लियां पौधों को खाती हैं और पत्तों पर छेद करती हैं, पत्तियों को कंकाल बना देती हैं, और तने से शुरू करते हुए पौधों के मरने (स्टेम डाइबैक) का कारण बनती हैं। भयंकर मामलों में, पूरा दल पौधरोपित खेतों पर बड़ी संख्या में हमला करके उन्हें रातोंरात नष्ट कर सकता है, जैसे मवेशी हमला करते हैं। इल्लियों का दल, पत्तियों की नोकों, किनारों, और यहां तक कि पौधे के आधार को काटकर धान की फ़सल को नुकसान पहुंचाते हैं। नर्सरी में लगे अंकुर, सीधी बुवाई वाली फ़सलें और धान की शुरुआती किल्लों की अवस्था में नुकसान ज़्यादा गंभीर होता है। फ़सल नष्ट करने के बाद लार्वा का दल दूसरे खेत में चला जाता है, बिल्कुल वैसे ही जैसे सैनिकों की टुकड़ी जाती है। पिछले दशक में यह धान के अंकुरों के लिए एक खतरनाक कीट के रूप में सामने आया है, जिससे 10 से 20% तक का नुकसान पहुंच सकता है।

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जैविक नियंत्रण

छोटे क्षेत्रों में, लार्वा खाने के लिए बत्तखों को खेतों में छोड़ा जा सकता है। खेतों में बोलास मकड़ियां छोड़कर भी वयस्कों से छुटकारा पाया जा सकता है क्योंकि इनमें मादा पतंगे जैसा फ़ेरोमॉन छोड़ने की क्षमता होती है। इससे नर पतंगे इसकी ओर आकर्षित होते हैं और समागम में कमी आती है। सूत्रकृमि (निमेटोड) स्टेनर्नेमा कार्पोकैप्से और न्यूक्लियो पॉलीहेड्रोवायरस युक्त घोल के छिड़काव से भी धान पर छाने वाली इल्लियों पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है।

रासायनिक नियंत्रण

हमेशा एक समेकित दृष्टिकोण से रोकथाम उपायों के साथ उपलब्ध जैविक उपचारों का इस्तेमाल करें। हमले की शुरुआती अवस्था में इल्लियों को खेत से बाहर जाने से रोकने के लिए खेतों के किनारों पर कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सकता है। क्लोरपायरिफ़ोस पर आधारित संपर्क कीटनाशकों को लगाने से भी इल्लियों को प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है।

यह किससे हुआ

क्षति का कारण धान पर छाने वाली इल्ली, स्पोडोप्टेरा मॉरिशिया है। यह विविधभक्षी प्रजाति कभी-कभी धान की फ़सल को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। पतंगे राख जैसे धूसर रंग और करीब 40 मिलीमीटर चौड़े पंखों वाले होते हैं। मादाएं रात में सक्रिय होती हैं और बाहर निकलने के 24 घंटे के अंदर समागम शुरू कर देती हैं। समागम के एक दिन बाद, वे कई तरह की घासों, खरपतवारों और धान के पौधे की पत्तियों पर 200-300 के समूहों में अंडे देना शुरू कर देती हैं। लार्वा पत्तियों के ऊतकों को खाते हैं और छह लार्वा अवस्थाओं से गुज़रकर अंत में 3.8 सेंटीमीटर लंबे हो जाते हैं। पूरी तरह से विकसित लार्वा चिकने, बेलनाकार, पीले रंग और पीठ पर धारियों वाले होते हैं। उनकी पीठ पर C-आकार के काले धब्बों वाली दो पक्तियां दिखाई देती हैं। ये रात में खाते हैं और दिन में मिट्टी में छिप जाते हैं। प्यूपा मिट्टी में खोदकर बनाए गए ककून में बनता है।


निवारक उपाय

  • प्रकोप से बचने के लिए खेत की लगातार निगरानी करें।
  • संख्या घटाने के लिए हाथ के जाल या झाड़कर उठाने वाली टोकरी से इल्लियों को पकड़ें।
  • प्यूपा को मारने के लिए गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें।
  • खेत और उसके आसपास से फालतू छोटे पौधे और खरपतवारों को नष्ट कर दें।
  • कीट का जीवन चक्र तोड़ने के लिए खेत में बारी-बारी से पानी दें और फिर सूखा छोड़ें।
  • नाइट्रोजन का अत्याधिक इस्तेमाल न करें।
  • गैर-मेज़बान फ़सलों के साथ फ़सल चक्रीकरण रोग से छुटकारा पाने में मददगार है।
  • वयस्कों को पकड़ने के लिए पतंगों के जालों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • भयंकर हमला होने पर, चारों तरफ़ गड्ढा खोदकर खेत को अलग-थलग करें और जुताई करके फ़सल नष्ट कर दें।
  • इसके बाद इल्ली और प्यूपा को शिकारी पक्षी खा जाएंगे।

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