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Physiological Disorder
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जिपरिंग एक दैहिक विकार है जिसके परिणामस्वरूप पतले भूरे परिगलित धब्बे पूरे फलों पर हो जाते हैं जो कि धीरे धीरे परिसीमित (फलों में एक जगह पर पड़ने वाली या सीमित होने वाली) दरारों का कारण बनते है। धब्बें आंशिक रूप से बढ़ते है और एक चेन की तरह लम्बाई और चौड़ाई में सम्मिलित रूप से खिलते हुए पुष्पकुंजों से लेकर तनों तक को हानि पहुचाते हैं, इसी कारण से इसका यह (जिपरिंग) नाम है। सामान्यता फलों के गूदों में खांचे बन जाते हैं और वाहय भाग पर विरूपण भी होता है। क्षतिग्रस्त उतक अपनी लचक खो देते हैं और फल पूरी तरह से विकसित नही होते हैं। यदि एक बार क्षति दिखायी पड़ने लगे तो कुछ भी करने के लिए काफी देर हो चुकी होती है।
जिपरिग एक दैहिक विकार है जो कि पुष्पीकरण के दौरान देर से और फलों के गुटों में शीघ्र ही निम्न तापमान और उच्च आर्द्रता के कारण हो जाता है। नवोदित फलों के विकास के समय , एक या कई परगकोश अण्डाशय की दीवार से जुड़े रहते है जिससे फलों के बाहर की ओर हल्के धब्बे विकसित हो जाते है। तापमान की संवेदनशीलता किस्मों - किस्मों (टमाटर की अलग अलग किस्मों) पर बदलती रहती है। टमाटर की कुछ किस्में अन्य की अपेक्षा अधिक प्रवत्त (जल्द प्रभावित होने की प्रवत्ति वाली) होती है बीफस्टीक (अधिक गूदेवाली प्रजाति के टमाटर) जोकि बुरी तरह से संतृप्त (पीड़ित) होने वालों में से एक है।
इस शारीरिक विकार के लिए कोई भी जैविक उपचार नहीं है। यह केवल रक्षक उपायों से ही उपचारित की जा सकती है।
यदि उपलब्ध हो तो रक्षक उपायों और जैविक उपायों को एकीकृत रूप से अपनाये। यह बीमारी केवल रक्षक या बचाव उपायों से ही उपचारित की जा सकती है।