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दालों का रतुआ रोग

Uromyces viciae-fabae

फफूंद

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संक्षेप में

  • पत्तियों की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे, सफेद से, थोड़े उभरे हुए धब्बे दिखाई देते हैं।
  • जैसे-जैसे वे बढ़ते हैं, ये धब्बे पाउडरी और नारंगी रंग के हो जाते हैं, जो अक्सर हल्के रंग के घेरे में रहते हैं।
  • ये दाने पत्तियों की दोनों ऊपरी और निचली सतहों, तनों और फलियों पर पाए जाते हैं।
  • प्रचंड संक्रमण के कारण पत्तियां झड़ जाती हैं, पौधे की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है और उसकी असमय मौत हो जाती है।

में भी पाया जा सकता है

3 फसलें
काबुली चना
मसूर
मटर

अन्य

लक्षण

पत्तियां, तने और फलियां संक्रमित हो सकती है। पहले लक्षण पत्तियों की ऊपरी सतह पर छोटे, सफेद से, थोड़े उभरे हुए धब्बों के रूप में नज़र आते हैं। जैसे-जैसे वे बढ़ते हैं, ये धब्बे पाउडरी और नारंगी रंग के हो जाते हैं, जो अक्सर हल्के रंग के घेरे में रहते हैं। ये दाने पत्तियों की दोनों ऊपरी और निचली सतहों, तनों और फलियों पर पाए जाते हैं। बाद की अवस्था में, प्राथमिक दानों के भीतर ही द्वितीयक दाने विकसित हो जाते हैं। ये O आकृति बनाते हैं जिसके केंद्र में एक बिंदु होता है। रतुआ (Rust) का प्रकटीकरण और तीव्रता बहुत हद तक उस समय के मौसम पर निर्भर करती है। जब तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होता है तब यह पौधों में तेज़ी से फैलता है और लगभग उसे पूरी तरह जकड़ लेता है। भारी संक्रमण होने पर पत्तियां झड़ जाती हैं, पौधे की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है और उसकी असमय मौत हो जाती है।

Recommendations

जैविक नियंत्रण

इस रोगाणु को नियंत्रित करने के लिए कोई जैविक नियंत्रण उपलब्ध नहीं है। नियंत्रित प्लॉट की तुलना में नीम के तेल, जट्रोफा के तेल या सरसों के तेल का रोगनिरोधी छिड़काव करने पर रोग की कम तीव्रता और बेहतर दाना उपज प्राप्त होती है।

रासायनिक नियंत्रण

निवारक उपायों के साथ-साथ जैविक उपचारों, यदि उपलब्ध हैं, पर हमेशा एक समेकित नज़रिये से विचार करना चाहिए। फिनाइलमरकरी एसिटेट और डाइक्लोबुट्राज़ोल से बीज उपचार का बीजों के माध्यम से रोग फैलाव कम करने में इस्तेमाल किया गया है। लक्षण दिखने के तुरंत बाद कवकनाशकों का छिड़काव और फिर 10 दिन के अंतराल पर दो और छिड़काव रोग लगने की संभावना और उसकी तीव्रता कम करता है। फ्लूट्रियाफोल, मेटालैक्सिल की भी दालों के रतुआ रोग (Lentil Rust) को प्रबंधित करने के लिए सिफारिश की जाती है।

यह किससे हुआ

लक्षणों का कारण फफूंद यूरोमाइसेस विसी-फैबी है जो कि पौधों के कूड़े और कोई फसल उपलब्ध न होने पर अवांछित पौधों और खरपतवारों में जीवित रहता है। यह बीजों पर संदूषण के माध्यम से भी फैलता है। इसके मेजबान कम होते हैं जिनमें दलों के अलावा बाकला (ब्रॉड बीन) और मटर शामिल हैं। जब परिस्थितियां अनुकूल (17 से 25 डिग्री सेल्सियस और लंबे समय तक गीली पत्तियां) होती हैं तब यह बीजाणु बनाता है जो कि हवा के माध्यम से लंबी दूरी तक जाकर नए पौधों और खेतों के संक्रमित करते हैं। इसके फैलाव के अन्य साधनों में खेतों के बीच पौधों के कूड़े का स्थानांतरण, संदूषित सूखी खास (Hay), और कपड़ों, औज़ारों और मशीनों का प्रदूषित होना है। अपनी फैलाव क्षमता के कारण इसे ऊंचे दर्जे का आर्थिक ख़तरा माना जाता है।


निवारक उपाय

  • प्रमाणित स्रोतों से स्वस्थ बीजों का इस्तेमाल सुनिश्चित करें।
  • यदि उपलब्ध हों तो प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें।
  • किसी गैर-मेजबान फसल के साथ फसल चक्रीकरण की योजना बनाएं।
  • खेतों को खरपतवार और अवांछित पौधों से मुक्त रखें।
  • रोग के संकेतों के लिए खेतों की निगरानी करें।
  • ध्यान रखें कि खेतों और फार्म्स के बीच से होकर संदूषित पौधा अवशेष न ले जाएं।
  • खेत में काम करने के बाद औज़ारों और उपकरणों को साफ़ और रोगाणुविहीन करें।
  • संक्रमित पौधों को जलाकर, चराकर और फसल कटाई के बाद गहरे दबाकर हटा और नष्ट कर दें।
  • सबसे ख़राब लक्षणों से बचने के लिए रोपण तिथि में बदलाव करें।

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